आदिपुरुष रिव्यु :- फिल्म पर उठ रहे सवाल ,डायरेक्शन से लेकर अभिनय तक सब फीका फिर भी हो रही करोड़ों की कमाई……
ओम राउत डायरेक्टेड फिल्म ‘आदिपुरुष’ जब से रिलीज़ हुई है सोशल मीडिया से लेकर जनता के बीच ये एक चर्चा का विषय बन चुका है । सुनने को मिला है कि फिल्म ने बड़ी ही अच्छी कमाई की है लेकिन जनता और ट्रोल्स ने इसका पीछा नहीं छोड़ा और ढेर सारे मीम्स बना कर फिल्म का मज़ाक उड़ाया और ‘आदिपुरुष’ के डायलॉग्स को लेकर भी खूब मीम्स वायरल हो रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि इस फिल्म को रामानंद सागर की रामायण से तुलना नहीं करनी चाहिए , क्योंकि ये आज की रामायण है, जिसे आज की जेनरेशन को ध्यान में रखकर बनाया गया है तो अगर एक पल के लिए हम आदिपुरुष से ये एक्सपेक्ट न भी करें तो भी फिल्म के डायलॉग देखकर आप क्या कहेंगे खासकर हनुमान की भाषा कुछ ज्यादा ही अटपटी सी लगती है जैसे कि ‘कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का.. जलेगी भी तेरे बाप की’ जैसे डायलॉग सुनकर लोगों को कैसा लगा होगा क्योंकि ईश्वर जिन्हें लोग पूजते हैं वो ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हुए कैसे लग रहे होंगे खुद सोचिए। कहीं न कहीं ये हमारी इंडस्ट्री का बड़ा नुकसान है कि इस तरह के कॉन्टेंट की वजह से शायद एक बारी को फिल्म से पैसा खूब मिल जाएगा लेकिन उससे बॉलीवुड इंडस्ट्री का नाम खराब होता जा रहा है। अब अगर एक और रामायण की बात की जाए जो एक एनीमेशन फिल्म है जो की 1992 में आई थी ” Ramayana: The Legend Of Prince” जो काफी बार दूरदर्शन में देखने को मिली और उस समय के बच्चों की सबसे लोकप्रिय फिल्म बन गई ये एनिमेटेड फिल्म थी इसे डायरेक्ट किया था Koichi Saski, Ram Mohan और इस फिल्म को बनाने के पीछे सोच थी Yugo Sako की और दोनों ही जापानी डायरेक्टर थे और इस फिल्म की खासियत ही इसका सादापन था जिसने जनता को मोहित कर लिया था इस दो घंटे की फिल्म में कई छोटे छोटे पहलुओं को दिखाया गया था वहीं फिल्म में चरित्रों के पीछे की आवाजों में अमरेश पूरी,अरुण गोविल, ब्रायन क्रांसटन, नम्रता साहनी जैसे दिग्गज थे। वहीं अगर आदिपुरुष की बात की जाए तो इस फिल्म में पहले तो रामायण की बारीकियों पर बिल्कुल भी काम नहीं किया गया और अभी तो फिलहाल अभिनय की बात हो ही नहीं रही है। बड़े बजट की फिल्म बनाने के लिए आपके पास खर्च करने के लिए पैसा हो सकता है लेकिन फिल्म कोई पैसा कमाने का मात्र एक जरिया नहीं है एक फिल्म से कई सारी भावनाएं जुड़ी होती है, और वही सब कुछ इस फिल्म में अलग थलग पड़ा हुआ था चाहे वो अभिनय हो, कहानी हो या फिर डायलॉग हों ऐसी फिल्मों को जब आज के समय में सपोर्ट मिलता है तो कहीं न कहीं कला पर से विश्वास उठ जाता है।
संवादों में भाषा का बना मज़ाक
आदिपुरुष फिल्म में जिन संवादों का इस्तेमाल हुआ है उसे लिखने वाले कोई और नहीं बल्कि नामी और बेहतरीन लेखक मनोज मुंतशिर है अब जिनके लेखन पर सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि राम को जिस भूमि में पूजा जाता है जहां हनुमान को सरल और भक्तिमय रूप में देखा जाता है उनके मुख से सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल होता तो देख दर्शकों की भावनाएं आहत हुई हैं जो की कोई मजे की नहीं बल्कि एक शर्मनाक बात है।
उदाहरण के लिए इसी फिल्म से एक डायलॉग
रावण का पुत्र इंद्रजीत बजरंगबली की पूछ में आग लगाने के बाद कहता है “जली ना? इसके बाद अब और जलेगी,बेचारा जिसकी जलती है वही जानता है” ।
अब इस बात पर मनोज मुंतशिर का जवाब आया कि इस फिल्म के डायलॉग जानबूझकर लिखे गए हैं ताकि आज के युवा उससे जुड़ सके और वो आगे कहते हैं कि ये फिल्म रामायण नहीं बल्कि रामायण से प्रेरित है और राम के कई पहलू हैं जिसे कई तरीकों से सुनाया जा सकता है इसके कोई गलत बात नहीं है।
वीएफएक्स के इस्तेमाल से कितनी सफलता और कितनी नाकामी
इस फिल्म को कहीं न कहीं इसके टेक्निकल हिस्से ने थोड़ा बचाया है लेकिन फिर भी पूरी फिल्म में भारी वीएफक्स से कहानी और किरदार दोनों ही कमजोर पड़ गए। जैसे रावण बिल्कुल इसी जेनरेशन का कोई विलेन दिखाई दे रहा है। फिल्म में लंका काफी डरावनी बनाई गई है और सैफ अली खान का सापों से मसाज कराना काफी ज्यादा हो गया जो बनावटी लगने लगा।
फिल्म मेंअभिनय भी कुछ खास नहीं था
मुख्य किरदारों की बात करें तो प्रभास ने राम की भूमिका तो अच्छी निभाई पर कहीं कहीं अभिनय कमजोर लगा हालाकि राम के क़िरदार को इस फिल्म में काफी क्रोधी भी दिखाया गया है जो की मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर बिल्कुल शोभा नहीं देता क्योंकि राम सरल स्वभाव के थे और लक्ष्मण काफी क्रोधी थे इस वजह से किरदार अभिनय में कमजोर नजर आए। कृति सेनन सीता के किरदार में थी पर वो बिल्कुल फिकी नज़र आईं फिल्म में वो वही लग रही थी जो बाकी फिल्मों में लगती हैं हालाकि वो खुबसूरत हैं इसमें कोई दो राहें नहीं पर अभिनय बिलकुल दमदार नहीं था। लक्ष्मण बने सनी सिंह बिलकुल भी लक्ष्मण के किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाए। हनुमान बने देवदत्त नागे का अभिनय अच्छा था पर उनकी भाषा और तरीका बेहद ही खराब था। हालाकि रावण बन सैफ अली खान काफी कुछ अच्छा कर सकते थे पर जितना भी किया अच्छा था परन्तु बीच बीच में वी एफ एक्स के चक्कर में वो फंस रहे थे और इस कारण उनकी परफॉर्मेंस पर गहरा असर पड़ा।
एक फिल्म का हिट होना न होना उतना जरूरी नहीं है अगर कॉन्टेंट, कहानी, रिसर्च ,अभिनय पूरा हो तो फिल्म दर्शकों को जरूर पसंद आएगी।